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चीनी परमाणु हथियारों पर अमेरिकी आशंका, भारत के लिए क्या हैं मायने?

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  • राघवेंद्र राव
  • बीबीसी संवाददाता

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एफ़एएस ने ये भी कहा है कि अब तक कम से कम 14 साइलो पर गुंबददार कवर बनाए गए हैं और अन्य 19 साइलो के निर्माण की तैयारी में मिट्टी को साफ किया गया है.

पिछले कुछ दिनों से अमेरिका में इस बात को लेकर आशंका जताई जा रही है कि क्या चीन परमाणु मिसाइलों को स्टोर और लॉन्च करने की अपनी क्षमता का विस्तार कर रहा है.

इस आशंका का आधार सेटेलाइट से ली गई वो ताज़ा तस्वीरें हैं जिनके ज़रिए ये कयास लगाए जा रहे हैं कि चीन पूर्वी शिनजियांग में एक बड़े इलाके में भूमिगत साइलो (स्टोरेज) बनाने के लिए सैकड़ों की तादाद में गड्ढे खोद रहा है.

फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (एफ़एएस) नाम के एक संगठन ने इन सेटेलाइट तस्वीरों के आधार पर दावा किया है कि चीन शिनजियांग में एक नया परमाणु मिसाइल़ीफील्ड बना रहा है.

अपनी वेबसाइट पर फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स ख़ुद को एक निष्पक्ष, ग़ैर-सरकारी संगठन बताता है जिसकी स्थापना 1945 में वैज्ञानिक मदद से राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए की गई थी.

जुलाई की शुरुआत में ख़बरें आई थीं कि चीन गांसु प्रांत में युमेन के पास 120 मिसाइल साइलो का निर्माण कर रहा है. हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार चीन का एक नया मिसाइल साइलो फ़ील्ड पूर्वी शिनजियांग में देखा गया है.

एफ़एएस ने कहा है कि पूर्वी शिनजियांग का साइलो फ़ील्ड युमेन साइट की तुलना में विकास के बहुत पहले चरण में है और इसका निर्माण मार्च 2021 की शुरुआत में परिसर के दक्षिण-पूर्वी कोने में शुरू हुआ और तीव्र गति से जारी है.

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एफ़एएस ने ये भी कहा है कि अब तक कम से कम 14 साइलो पर गुंबददार कवर बनाए गए हैं और अन्य 19 साइलो के निर्माण की तैयारी में मिट्टी को साफ़ किया गया है. एफ़एएस का कहना है कि पूरे परिसर की ग्रिड जैसी रूपरेखा बताती है कि इसमें अंततः लगभग 110 साइलो बनकर तैयार होंगे.

कितने सही निष्कर्ष

क्या मात्र साइलो के लिए गड्ढे खोदने का मतलब ये निकला जा सकता है कि उनमें मिसाइल ही रखे जायेंगे? रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ऐतिहासिक रूप से साइलो का उपयोग मिसाइलों को स्टोर करने के लिए ही किया जाता है.

मिसाइल साइलो या पवन ऊर्जा फ़ार्म?

बीबीसी चाइनीज़ सर्विस के संपादक हॉवर्ड ज़्हंग कहते हैं कि चीनी मीडिया अमेरिकी निष्कर्षों को “फ़ेक न्यूज़” और “अफ़वाह” कह रही है.

उनके अनुसार ग्लोबल टाइम्स जैसे आधिकारिक मीडिया ने साइलो के बारे में निकाले गए अमेरिकी निष्कर्षों को बकवास कहकर ख़ारिज कर दिया है और कहा है कि उपग्रह चित्रण में जो दिख रहा है वो नए पवन ऊर्जा संयंत्रों के फ़ार्म हैं.

हालांकि चीनी सरकार ने आधिकारिक तौर पर अमेरिकी आरोपों या चीनी मीडिया की पवन ऊर्जा फ़ार्म की थ्योरी पर कोई टिप्पणी या प्रतिक्रिया नहीं दी है.

बीजिंग ने ज़ोर देकर ये ज़रूर कहा है कि वो हमेशा “पहले उपयोग नहीं” नीति के लिए प्रतिबद्ध है, जिसका अर्थ है कि परमाणु हमला होने पर ही चीन जवाबी हमला करेगा, पहले नहीं.

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हॉवर्ड ज़्हंग कहते हैं, “हालांकि चीन ने हमेशा अपनी वास्तविक परमाणु शक्ति का इज़हार करने से परहेज़ किया है, लेकिन बीजिंग ने हमेशा कहा है कि उसके पास “मिनिमम डेटरेंट” परमाणु हथियार हैं जिसका अर्थ है कि वह केवल संभावित हमलावरों को डराने के लिए परमाणु हथियार रखता है.”

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अमेरिका चीन को परमाणु हथियार नियंत्रण वार्ता में शामिल करने की कोशिश कर रहा है जो वर्तमान में केवल अमेरिका और रूस के बीच हुई है. चीन ने अब तक इस आधार पर निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है कि उसकी परमाणु शक्ति अमेरिका और रूस की तुलना में “बहुत छोटी” है और उसकी परमाणु शक्ति केवल “मिनिमम डेटरेंट” है.

ज़्हंग कहते हैं कि एफ़एएस रिपोर्ट इस तरफ इशारा करती है कि यह कई दशकों में चीनी सामरिक परमाणु बल में सबसे बड़ी वृद्धि हो सकती है. वे कहते हैं, “अगर साइलो के दृश्य वास्तविक हैं और वैसे ही हैं जैसे एफ़एएस रिपोर्ट में कहा गया है तो चीनी मिसाइल साइलो की संख्या रूस के बराबर या उससे अधिक हो जाएगी और अमेरिका से आधी होगी.”

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अंतरराष्ट्रीय आकलन

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के नवीनतम शोध के अनुसार रूस के पास 6,255, अमेरिका के पास 5,550, ब्रिटेन के पास 225, भारत के पास 156 और पाकिस्तान के पास 165 परमाणु हथियारों की तुलना में चीन के पास आज 350 परमाणु हथियारों का भंडार है.

ज़्हंग कहते हैं कि चूंकि चीन न तो पुष्टि करता है और न ही इनकार करता है इसलिए बाहरी पत्रकारों के निश्चित उत्तर खोजने की संभावना बहुत कम है.

उनके अनुसार कुछ अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का यह भी सुझाव है कि इस समय अमेरिका और चीन के बीच तनावपूर्ण प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में इन साइलो का दिखाया जाना बातचीत की एक रणनीति हो सकती है.

चीन बनाम अमेरिका

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बीबीसी ने दिल्ली के फ़ोर स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में चीनी मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर फ़ैसल अहमद से इस मसले पर बात की.

हमने उनसे पूछा कि चीन की सैकड़ों साइलो बनाने के पीछे क्या वजह हो सकती है. डॉक्टर अहमद ने कहा कि पिछले कुछ समय में अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में तनाव आया है उसके चलते “युमेन और पूर्वी शिनजियांग क्षेत्र में मिसाइल साइलो की खुदाई संभावित रूप से एक चीनी रणनीति हो सकती है”.

वे कहते हैं, “परमाणु क्षमताओं को विकसित करके चीन का लक्ष्य हिन्द-प्रशांत क्षेत्र, खासकर दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर और ताइवान स्ट्रेट्स में अमेरिका के भू-राजनीतिक दबदबे का मुकाबला करना है.”

हमने डॉक्टर अहमद से पूछा कि क्या चीन अपने परमाणु शस्त्र भंडार को व्यापक रूप से बढ़ाने की कोशिश कर रहा है और अगर ऐसा है तो अभी क्यों.

उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन अपनी परमाणु क्षमताओं को एक निवारक के रूप में देखता है और साथ ही साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी आधिपत्य का मुकाबला करने के अपने प्रयास में उन्नति कर रहा है.

डॉक्टर अहमद कहते हैं, “चीन की वर्तमान परमाणु क्षमताएं अमेरिका या रूस की तुलना में बहुत कम हैं और नए विकास केवल एक मामूली वृद्धि होगी.

वे कहते हैं, “चीन की परमाणु क्षमताएँ निश्चित रूप से एक निवारक के रूप में काम करेंगी भले ही वे क्षमताएं अमेरिका से छोटी हों. इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की भू-रणनीतिक भूमिका को भी बढ़ावा मिलेगा.”

हाथी के दांत?

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रक्षा विशेषज्ञ इस बात की चर्चा भी कर रहे हैं कि कहीं चीन ये साइलो अपने प्रतिद्वंद्वियों को झांसा देने के लिए तो नहीं बना रहा?

सुयश देसाई तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में चाइना स्टडीज प्रोग्राम में कार्यरत एक रिसर्च एसोसिएट हैं.

देसाई इस बात से इनकार नहीं करते कि ये साइलो अन्य देशों को झांसा देने के उद्देश्य से भी बनाये जा सकते हैं. वे कहते हैं, “उदाहरण के लिए अगर चीन 100 साइलो बनाता है तो यह आवश्यक नहीं है कि वो उनमें से हर एक साइलो में मिसाइल रखेगा. संघर्ष की स्थिति में इससे अन्य देश भ्रमित होंगे. चीन पर हमला करने वाले किसी भी देश को चीन के परमाणु हथियारों से छुटकारा पाने के लिए इन सभी साइलो को नष्ट करना होगा. यह सबसे बड़ी संभावना है. यह एक तरह का डेटेरेंट है जिसे चीन साइलो की संख्या बढ़ाकर बना रहा है.”

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दक्षिण चीन सागर को लेकर दुनिया से लड़ने को क्यों है तैयार चीन? – Duniya Jahan

देसाई का कहना है कि चीनी परमाणु नीति आम तौर पर ‘सुनिश्चित प्रतिशोध’ की रही है. वे कहते हैं कि अब इन साइलो की खोज के साथ विशेषज्ञ चीनी नज़रिए में मामूली बदलाव का संकेत दे रहे हैं जहां चीन ‘चेतावनी पर लॉन्च’ की ओर बढ़ रहा है जिसका मतलब ये है कि चीन हमले की चेतावनी मिलने पर तुरंत जवाबी कार्रवाई करेगा.

देसाई के अनुसार चीन के हथियार बढ़ रहे हैं और अनुमानों के अनुसार उसके परमाणु हथियारों की संख्या 300 से बढ़कर 900 के क़रीब पहुँच गई है.

भारत के लिए नया सिरदर्द?

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चीन दक्षिण चीन सागर में भी प्रभाव बढ़ा रहा है

कहीं ऐसा तो नहीं कि चीन क्षेत्रीय प्रभुत्व बढ़ाना चाह रहा है और अगर ऐसा है तो भारत को कितना चिंतित होना चाहिए?

डॉक्टर अहमद कहते हैं कि भारत को दोहरे फ़ोकस की जरूरत है. वे कहते हैं कि भारत को अपनी नौसैनिक निगरानी को उन्नत करके और नौसेना के आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

डॉक्टर अहमद के अनुसार भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अमेरिका पर अपनी रणनीतिक निर्भरता के बारे में “सतर्क” होना चाहिए. वे कहते हैं, “चीन के उदय को रोकने के लिए अमेरिका का अपना रणनीतिक हित है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक शक्ति के रूप में अमेरिका को विस्थापित करने की चीन की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. भारत को इस क्षेत्र में और विशेष रूप से हिंद महासागर में बिना किसी का पक्ष लिए अपने ख़ुद के भू-सामरिक हितों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.”

देसाई का मानना है कि भले ही भारत को इन साइलो के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यह एक अमेरिका केंद्रित बात है, लेकिन पिछले कुछ समय में चीन से उसके रिश्तों में आयी खटास के चलते भारत को सतर्क रहने की ज़रूरत है.

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